शनिवार, 1 मई 2010

चलो इंडिया! प्रदर्शनी

अन्ना शिमोन--

हम शुक्रवार को गाड़ी से विएना गए। हमने वहाँ एक बहुद सुंदर कैफे में कॉफी पी। वहाँ से हम एक गुलाबी रंग की बस से चलो इंडिया प्रदर्शनी देखने क्लोस्तैरनैउबुर्ग के संग्रहालय में गए। यह प्रदर्शनी एक आधुनिक कलात्मक प्रदर्शनी थी। उसका पहला चित्र एक लेचा हुआ हाथी थाष वह अनेक बीजों से रचा हुआ था। अगले कमरे में बड़े रंग-बिरंगे और सुंदर चित्र थे। हर कमरे में कुर्सियाँ थीं जो अलग-अलग दिखती थीं। वहाँ एक ऐसा कमरा भी था जिसमें लोग जाते थे तो वे अपनी छाया के पास कूड़े की छायाएँ चिपकी देखते थे। यह मेरा मनपसंद कमरा था। एक दूसरे कमरे में एक हड्डी से रचा स्कूटर था जो भयानक था। सका मतलब था कि जो इस में बैठता है वह मर जाता है। इस कमरे में एक मोटर साइकिल भी थी जिसकी दोनों ओर पानी के बर्तन थे। एक दूसरे कमरे में दो टेलीविजन थे, जिनमें दल्लास और एक हिंदी फिल्म चल रही थी इसका मतलब था कि भारत में पश्चिमी संस्कृति और भारतीय संस्कृति का साथ अच्छा बनता है। एक दूसरे कमरे में गेंडे की तस्वीर थी। स पर जानवर के चमड़े का जमाव एक कपड़े का जमाव था।

मेरे विचार से यह प्रदर्शनी बहुद रोचक थी। यह मुझे बहुत पसंद आई।

रीता जुलि शिमोन --

अक्तूबर के एक सप्ताहांत में हम भारतविद्या पढ़नेवाले छात्र अध्यापकों के साथ एक भारतीय प्रदर्शनी देखने गए। प्रदर्शनी का शीर्षक चलो इंडिया था। यह विएना में थी। उसकी शैली आजकल की प्रदर्शनियों से अलग थी, क्योंकि कलाकारों की रचनाएँ बिल्कुल दर्शनीय और व्यंग्यात्मक थीं।

हमने विभिन्न भारतीय चीजें देखीं जैसे रिक्शा, मोटर, बर्तन, बाँस के डिब्बे आदि। सबसे पहले हमें एक लेटा हुआ बड़ा हाथी मिला। उसकी त्वचा पर बीच में कुछ लिखा था जिसका मतलब था कि भारत में ज्यादा और ज्यादा लोग रहते हैं। हड्डी से बना एक रिक्शा भी था जो सड़कों पर चलनेवाली गाड़ियों की मृत्यु दिखाना चाहता था। एक मोटर की दोनों ओर दूध के सुंदर बर्तन लटके थे। इन रोचक चीजों के अधिक अर्थ हो सकते हैं।

छोटी फिल्में और तरह-तरह की तस्वीरें भी थीं, विषय आमतौर पर उनका आधुनिक था। अंत में मैं यह कह सकती हूए कि प्रदर्शनी उच्च कोटि की थी लेकिन मुझे उसका मतलब बस कुछ देर से पता चला।

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