शुक्रवार, 21 मई 2010

लयोश गुलाचि का जीवन


मैलिंदा कार्पाति--


वह १८८२ में, बुडापेस्ट में पैदा हुआ था, और १९३२ में मर गया। वह एक हंगरियन प्रसिद्ध चित्रकार था और इस के अलावा आध्यात्मिक कला का मुख्य मास्टर भी था। उसकी कला की मूल वस्तु स्वप्न और छाया हैं। उसका जीवन कारुणिक था।
बचपन में उसने एक कला स्कूल में पढ़ाई की, पर स्कूल पास करने के बाद उसने अपने परिवार के घर में, बेरेग नामक छोटे से गांव में अकेले ही चित्रकला सीखी।
१९०२ में वह पहली बार रोम गया। वह वहाँ इटली से सनातन प्रेम में पड गया। इस के बाद उसने इस देश में बहुत समय बिताया और इधर-उधर की यात्राएँ कीं। उसकी मनपसंद जगह कोमो का तालाब, पाडोवा और वेरोना थे, पर उसने फ्लोरेंस और रोम में भी एक वर्ष बिताया।
उसे इतालवी नवचेतना की कला बहुत अच्छी लगीं। उसने देहात की खूबसूरत तस्वीर से भी प्यार किया, जो उसकी तस्वीरों में भी दिखाई देता है।
पुराने इतावली शहरों में घूमकर उसके मन में मध्यकाल के समय से प्रेम की भावना आयी। वह उनकी मदद से आधुनिक दुनिया के विकर्षण और दुःख से बच सका।
वह आधुनिक दुनिया से डरता था। वह इस दुनिया से घृणा करता था, इसलिए उसने अपने लिए एक स्वप्नलोक बनाया। उसने उस स्वप्नलोक को नेकोनिक्सीपान (Naconxypan) नाम दिया।
यह कल्पना लोक का देश जापान और चन्द्रमा के मध्य में कहीं बसा है, और इसमें बहुत छोटे-छोटे और अजीब निवासी रहते हैं
इस स्वप्नलोक के लिए गुलाचि ने खुद एक अद्वितीय और नयी भाषा बनायी, जिसे वह बोल और लिख भी सकता था। गुलाचि की अनगिनत तस्वीरों में इस देश के निवासियों के जीवन और देश का आकार भी दिखाई देता है
पहले विश्‍व युद्ध ने उसके जीवन में बड़ा परिवर्तन किया , क्योंकि इसके असर के कारण से वह अचानक पागल हो गया और उसे पागलखाने भेजा गया।
इस के बाद वह अंधा भी हो गया, इसके साथ उसकी कला का अंत हुआ। दस साल के बाद उसका देहांत भी हो गया।

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