बुधवार, 12 मई 2010

गणेश का जन्म

मोर्वइ गैर्गैय--

एक दिन पार्वती नहाने वाली थी तो उन्होंने एक गण से घर में किसी नहीं को प्रवेश करने देने के लिए कहा। परंतु कुछ देर बाद शिव घर लौटे और वे अंदर आना चाहते थे तो गण ने उन्हें जाने दिया। पार्वती बहुत नाराज़ हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे अपने आप के लिए एक पुत्र खुद बनाएगी। उन्होंने अपने पुत्र अपने शरीर से बना लिया और उस से कहा कि ध्यान रखना कोई भी घर नहीं जाना चाहिए। शिव पुनः वहाँ टहल रहे थे और उन्होंने लड़के से पूछा कि वह कौन है और क्या कर रहा है उसके घर के द्वार पर। उसने कोई उत्तर नहीं दिया पर अभी शिव को अपने डंडे से मारा। शिव बड़े नाराज़ हो गये तो उन्होंने सभी गणों को लड़के पर आक्रमण करने का आदेश दिया। परंतु वे नहीं जीत सके और न कर्तिकेय और न इन्ट्र देवताओं के साथ। इसके कारण शिव और विष्णु ने झाँसा देने की तैयारी की इसलिए विष्णु ने लड़के पर आक्रमण किया तब शिव ने पीछे से अपने त्रिशूल से उसका सिर काटा। जब पार्वती ने यह सुना वे बहुत क्रोधित हो गईं। उन्होंने दुर्गा और काली को बुलाया और वे गणों और देवताओं को मारने लगीं। उन्होंने पार्वती से कहा कि उन से अंत करवाए और पार्वती ने कहा कि अगर वे पुत्र को जीवित करेंगे तो अच्छा होगा। शिव ने कहा कि जिस जीव से वे पहले मिलेंगे तो उसका सिर लड़के को देंगे। यह एक हाथी था तो उन्होंने उसका सिर काटा और लड़के के शरीर पर रख दिया। फीर शिव ने उसका नाम गणेश रखा कयोंकि वह गणों का स्वामी हो गया और सुख और धन का देवता भी।

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